Saturday, September 25, 2010

idwsdy qoN axidwsdy vl: poR[ jgdIsL isSG


iÉafl idwsdy qoN axidwsdy vl ਸਦਾ ਹੀ ਸਫ਼ਰ ਕਰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ pr Ausdf ieh axidwsdf idwsdy dIaF ÉUbIaF vflf hI huMdf hY aqy mnuwKI buwwDI dy ivkfs nfl iesny hOlI hOlI idwsdy 'c qbdIl huMdy hI rihxf hY. ieh vI amuwk. ies krky iÉafl jgq ivwc idsdy qy axidsdy dI Kyz cldI hI rihxI hY. ieh axidwsdf idwsdy 'c plt byielmI dy ÉUbsUrq rUpF ƒ Kqm krdf rMg, rs qy husn ƒ Kqm kr igafn dI iswDrI scfeI nfl iËMdgI ƒ rUhhIx, sMgIqhIx bxf idMdf hY. ieh axidwsdf ijMnf idwsdy ivwc pltygf jIvn Enf hI iekhrf, mfnsk AulJxf BrpUr, pycIdgIaF, iekwlqf, boJl qy suMgVy hoeI mnuwKI cfvF vflf ho ijsm df jÈn vI gvf bYTygf. ieh TIk hY kuJ vihm tuwt jfxgy qy kuJ srIr ƒ shUlqF iml jfxgIaF pr jd Gr hI suMÖf ho jfvy qF ÉflI mkfn ivwc icrfÊ bfl ky kI lYxf? pr bMdgI dI isKr idwsdy qoN axidwsdy ivwc jf muwk nhIN jFdI blik ieh jfigRq ho idwsdy vwl prq afAuNdI hY. hflFik ieh axidwsdf kdI vI idwsdy 'c nhIN pltdf. ieQy axidwsdf idwsdy ƒ afpxy ijhf ivÈfl, AuWzxf qy asIm, sMgIqmeI qy rsIaf bxf Ausƒ sO sO husn cfVHdf hY. iesy pRkfr ÈrIaq qoN ÈurU ho bMdgI muV ÈrIaq qy phuMcdI hY.


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I have transliterated below is the same article in Hindi ..


दृष्टा से अदृष्टा की ओर:  प्रो. जगदीश सिंह 
बुधि का प्रवाह दृष्टा से अदृष्टा की ओर निरंतर जारी रहता है I परन्तु उसका यह अदृष्टा, दृष्टा के ही लक्षणों से परिपूर्ण होता है I मनुष्य की बुधि के विकास के आश्रय से इस अदृष्टा ने धीरे-धीरे दृष्टा में परिवर्तित होते ही रहना है और यह भी अनन्त  I इसीलिए तार्किक संसार में यह 'दृष्टा से अदृष्टा की ओर' का खेल चलता ही रहना है I यह अदृष्टा दृष्टा में रूपांतरित होकर, भोलेपन के अति खूबसूरत सौन्दर्य को समाप्त करता रंग, रस और हुस्न को ज्ञान की सतही सच्चाई से ज़िन्दगी को रूपहीन तथा संगीतहीन  बना देता है I यह अदृष्टा जितना दृष्टा में परिवर्तित होगा उतना ही इकहरा, मानसिक उलझनों से भरपूर पेचीदगियों, अकेलापन, बोझल और संकुचित हुई मानवीय वासनाओं वाला होकर जिस्म का जश्न भी गवा बैठेगा I यह निश्चित है कि कुछ भ्रम टूट जायेंगे और शरीर को कुछ सहूलतें भी मिल जायेंगी I लेकिन जब घर ही खाली हो तो चिराग जला कर क्या लेना ? इसके विपरीत बंदगी की चोटी पर यात्रा दृष्टा से अदृष्टा तक जाकर समाप्त नहीं हो जाती अपितु यह जागृत होकर दृष्ट की ओर वापिस लौट आती है I अदृष्टा कभी दृष्टा में परिवर्तित नहीं होता I यहाँ अदृष्टा दृष्टा को अपने जैसा विशाल, उद्दण, असीम, संगीतमई  और रसिया बनाकर उसे सहस्त्रों हुस्न चढ़ाता है I इसी प्रकार शरईयत  से आरम्भ होकर बंदगी वापिस शरईयत पर ही पहुँचती है  I

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