Saturday, August 21, 2010

खड़ग

'संत', गुरमुख के रूप में, गुरबाणी का एक महत्वपूर्ण प्रतीक चिन्ह है जिसके द्वारा सम्पूर्ण मनुष्य का दृष्टांत दिया गया है | इसी के द्वारा गुरु के वचन मानव जीवन में प्रवेश करके उसे बदलते हैं | यह संत न तो बोद्ध भिक्षु है और न ही केवल चेतना को साधने वाला पातंजली का समाधि तक सीमित अभ्यासी | यह ज़िन्दगी का क्रियाशील सिपाही है- दैवी नियमों की रक्षा करने वाला और इन्हें ज़िन्दगी से जोड़ने वाला | खड़ग ऐसे संत का मार्गदर्शन करके उसे 'ज्ञानातित्व' देती है | 'ज्ञानातित्व' शब्द का अर्थ बोद्ध ग्रंथों में 'निर्णायक सुख' तक पहुंचता है | खड़ग को इतना ऊंचा कर्तव्य प्रदान-कर गुरु साहिब ने इसे दिव्य नैतिकता का संचालक बनाया है | इसीलिए इसका प्रयोग भी किसी निजी स्वार्थ या सीमित प्रयोजन के लिए नहीं हो सकता, केवल उस क्रान्ति के लिए ही, जो कि 'निर्णायक सुख' लाए और दिव्य नैतिकता का संचालन कर सके | समकाली अर्थों में खड़ग एक परिवर्तन लाने वाले हस्तक्षेप का प्रतीक है - एक क्रन्तिकारी का हथ्यार जो समस्त ब्रह्माण्ड के आधारभूत नियमों और जीवन की मूल प्रक्रिया को आगे ले जाने के लिए वचनबद्ध है | 

डॉ. गुरभगत सिंह (अनुवादक: सुरिंदर सिंह)
The original article in Punjabi is as under.

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